सुखी..ओ सुखी…सुबह के 5 बज गए हैं और अभी तक महारानी की तरह सो रही हैं |
कड़कती आवाज में एक चालीस वर्षीय महिला ने कहा |
इतना सुनते ही हड़बड़ाते हुए एक 22 साल की लड़की चारपाई से उतरी |
रंग गोरा, काले बिखरे बाल और आँखें बिल्कुल समुंदर की तरह नीली और गहरी |
जल्दी से कपड़े ठीक करते हुए उसने कहा,
माँ जी, वो देर रात तक जगी हुई थी, तो सुबह आँख ही नहीं खुल रही थी, माफ कर दीजिए अगली बार ऐसा नहीं होगा, सुखी ने काँपते हुए कहा |
वो चालीस वर्षीय महिला जो सुखी की सास थी और जिसका नाम रतना था, उसने गुस्से में सुखी को घुरा और बोल, हमें भी तो बताओ कि ऐसा कौन सा काम कर रही थी महारानी जो रात को जागना पड़ा.. इतना कह वह कमरे में इधर – उधर देखने लगी और लपक कर एक बोरे को उठाया, नीचे देखा तो कुछ किताबें पड़ी थी |
इतना देखते ही रतना ने लगभग चीखतें हुए बोला, तो महारानी ये गुल खिला रही थी |
कितनी बार मना किया है कि पढ़ाई – लिखाई का भूत सर से उतार ले और घर के कामों में मन लगा, पढ़कर कौन सा कलक्टर बनना है, एक तो पहले ही हमारे बेटे को खा गई और अब हमारी नाक कटवाने पर तुली हैं |
सुखी, माँ जी ऐसा नहीं है, मैं तो बस..
रतना, तु चुप रह आज तो मैं तेरे सर से इस पढ़ाई – लिखाई का भूत उतार कर ही रहूँगी, ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी…इतना कहते हुए रतना ने किताबों को उठाया और कमरे से निकलने लगी |
बाहर आँगन में चुल्हा जल रहा था |
रतना उधर की ओर लपकी और सारे किताबों को एक झटके में चुल्हे में डाल दिया |
सुखी, माँ जी ऐसा मत करिए…
रतना ने गुस्से से सुखी को देखा और कहा, अब कर लें तु पढ़ाई |
चुल्हे की आग में धूँ – धूँ करते हुए किताबों के साथ – साथ सुखी के सपने भी जलने लगे, इस जलन की तपिश को सुखी महसूस कर रही थी |
एक साल पहले जब वह ननकू से शादी कर इस घर में आई थी | कितने खुश थे सभी, तब हालात ऐसे ना थे |
ननकू चाहता था कि सुखी पढ़े -लिखे और अपने सपनों को साकार करे |
जब ननकू ने सुखी के पढ़ने की बात घर में बताई थी तब किसी को भी सुखी के पढ़ाई से कोई आपत्ति नहीं थी |
ननकू के कहने पर सुखी ने पढ़ना शुरू किया और वो भी ख्वाब देखने लगी एक अच्छे कल का |
पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था |
एक दिन घर लौटते वक्त ननकू का एक्सीडेंट हो गया और वो हमेशा के लिए सुखी को छोड़कर इस दुनिया से चला गया |
ननकू के जाने के बाद सबकुछ बदल गया |
जो सुखी कभी ससुराल वालों की लाडली हुआ करती थी वो ही अब उनके आँखों को खटकने लगी थी |
बात – बात पर ताने मिलने लग, पर सुखी ननकू के दिखाए हुए सपनों के सहारे जीने की कोशिश करने लगी पर आज वो कोशिश भी दम तोड़ गई |
नहीं..नहीं…सुखी अचानक जोर से चिल्लाई |
मैं पढूँगी, हाँ मैं पढूँगी |
अपने लिए जीऊँगी…ननकू के सपने को पुरा करूँगी |
सुखी झट से उठकर कमरे में गई, कुछ देर बाद वो धुले, साफ कपडे पहन बाहर निकली उसके हाथ में एक थैला
था|
सुखी को जाते हुए देख रतना ने बोला, कहा चली इतनी सुबह, तेरे सर से अभी तक भूत नहीं उतरा क्या…
ऐ ननकू के बापू जल्दी आओ…
तभी एक 50 वर्षीय आदमी जो कि सुखी का ससुर था बाहर आया और सुखी को रोकने के लिए उसकी ओर लपका |
रूक जाओ…मेरे पास भी मत आना ये कहते – कहते सुखी ने पास में पड़ी हुई घास काटने की हसली उठा ली और हवा में उछाला |
सुखी के सास और ससुर वही रूक गए |
मैं पढूँगी और तुम सब मेरे सपनों को मुझसे नहीं छीन सकते आज मेरी परीक्षा हैं , शाम तक घर लौट आऊँगी.. इतना कह सुखी तेज कदमों से चल पड़ी आज वो काफी हल्का महसूस कर रही थी, जैसे की उसके पंख से कोई बोझ उतर गया हो, और वो खुले आकाश मे उड़ान भर रही हो |
You need to login in order to vote
शब्दों को खूबसूरती से पिरोकर बहुत सुन्दर कहानी लिखी है आपने।
अन्त भला तो सब भला
Thanku so much
Very nice