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देखा तो नहीं था अब तक हमनें एक दूसरे को, पर हम एक दूसरे के एहसासों से अच्छी तरह मुख़ातिब थे। एक दूजे को बिन देखे हम गहरी मोहब्बत में थे। हम असल में दो ज़िस्म एक जान थे। हम एक दूजे के रूह में थे। हम एक दूसरे की तकलीफ़ और ख़ुशी को बिन कहे समझ जाते थे।
हमारी बातें भी अक्सर हो जाया करती थी। वो अक़्सर मुझे अपनी कहानियाँ सुनाती थी। मेरे लिए उन्होंने कितनी तैयारी कर रखी है मुझे बताती रहती थी। हमदोनों को एक दूजे से मिलने की चाहत तो बहुत थी पर ,इंतेज़ार था तो सही वक़्त का। दोनों तरफ़ एक दूजे से मिलने की बेताबी बढ़ती जा रही थी।
क़रीब 9 महीनों और कठिन संघर्ष के घण्टों के बाद हमारे मुलाक़ात का समय आया। हमारी इस पहली मुलाक़ात में मेरे नन्हीं आँखों में ढेर सारे आँसू,के साथ किलकारी थी और उनके होठों पर बड़ी सी मुस्कान थी। हाँ शायद जिंदगी का इकलौता मोड़ था जब मेरे रोने पर वो मुस्कुराई थीं।
बड़े लाड़ से गोद में उठा कर उन्होंने मुझे जो चूमना शुरू किया ,मैं रोना भूल मुस्कुराने ही लगी। मुझे लगा जैसे मुझे जन्नत मिल गयी हो। मैंने अपने नन्हें हाथों से उनकी ऊँगली को कस कर थाम लिया, क्योंकि काफ़ी लंबे इंतेज़ार के बाद हुए इस मिलन के बाद मैं उनसे बिछड़ना नहीं चाहती थी। उनका यूँ प्यार भरी नज़रों से मुझे निहारना मुझे बेहद सुकून दे रहा था। उनका आशीर्वाद मुझे जीवन की हर परिस्थिति से लड़ने की ताकत दे रहा था।
©Radha
@lafz_e_dil__
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