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कभी लुटेरा कभी भगवान

By |2020-04-18T08:10:30+00:00April 18th, 2020|People, Uncategorized|

ये कहानी उस इंसान के व्यक्तित्व को दर्शाता है जिन्हें हम लुटेरा बुलाते हैं, और आज वही व्यक्ति , पूरा देश नही बल्कि पूरी दुनियां में अपनी जान पर खेल कर इस मानव जाती को बचाने की कोशिश कर रहा है।
जब हम कोई बीमारी ले कर डॉ साहब के पास जाते हैं और हमे डॉ साहब की फीस 200 रुपया या 500 रुपया देना पड़ता है, तो उस समय हम कहते हैं कि डॉ लुटेरा है, 2-4 दवा लिख दिया 10 मिनट समय लगा और 500 रुपया ले लिया “लुटेरा डॉ”, जी हाँ लेकिन उस समय हम यह नही सोचते कि इस बीमारी का इलाज अगर हम इस लुटेरे डॉ से नही करवाते हैं तो हमारी जान भी जा सकती है, ओर जान बचाने वाले भगवान होते हैं, ओर उस भगवान को हम लुटेरा शब्द से संबोधित कर रहे हैं।
इतिहास गवाह है कि जब जब इस पृथ्वी पर मानव जाति पर किसी भी तरह की आपदा आती है तो वही लुटेरा डॉ अपने जान की परवाह किए बिना इस मानव जाति को बचाने में दिन रात एक कर देते हैं।
आज कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरा देश लॉकडाउन है और हम सभी देशवासी यहाँ तक कि हमारे नेता मंत्री सब अपने घरों में अपने परिवार के साथ अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के लुटेरा डॉ इस मानव जाति को बचाने के लिए दिन रात काम पर लगे हुए हैं, कई दिनों से घर नही गए, कई दिन हो गए अपने बच्चों से मिले, सिर्फ इसीलिए की ये मानव जाति हमेशा इस पृथ्वी पर अमर रहे।
देश में लुटेरों का एक और ग्रुप है जिन्हें सुरक्षा कर्मी कहते हैं, देश के किसी भी नियम का जब हम उलंघन करते हैं, और जब हमारे सुरक्षा कर्मियों के द्वारा चालान की बात आती है तो सुरक्षा कर्मी लुटेरे हो गए, उस समय ” चालान मत बनाओ सर गलती हो गई 100-200 रुपये ले कर छोर दो” ऐसा बोलने वाले हम होते हैं और सुरक्षा कर्मी लुटेरे हो गए।
इतिहास गवाह है जब जब देश पर या देश की आम जनता पर संकट की घड़ी आती है या संकट की घड़ी ना आए, जिसके लिए हमारे देश के सभी सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं ना कोई दिवाली और ना ही कोई होली की छुट्टी।
और आज जब पूरा देश कोरोना के प्रकोप से जूझ रहा है, इस लॉकडाउन में हमलोग अपने अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं, वही दूसरी तरफ हमारे सुरक्षा कर्मी इस मानव जाति की सुरक्षा व्यवस्था में अग्रसर है, आपके घर तक आपकी जरूरत का सामान पहुंचा रहे हैं ताकि आपको कोई तकलीफ ना हो उन्हें भी कोरोना का डर है, उनके भी बच्चे हैं उनका भी परिवार है लेकिन वो इन सब की परवाह किए बिना 24 घंटे सेवा में लगे हुए हैं।
आज हमारी ही सुरक्षा के लिए सिर्फ 21 दिन का लॉकडाउन हुआ तो हम कहते हैं कि सरकार ने हमे पिंजरे में बंद कर दिया, जरा उस भारतीय नौसेना के बारे में सोचो जो कई महीनों तक जहाज में समुंद्र का चक्कर लगाते रहते हैं इस माँ भारती की सुरक्षा के खातिर उन्हें पिंजरा नही लगता क्या, जरा उस नौजवान सैनिकों के बारे में सोंचिये जो अपने परिवार से दूर किसी जंगल मे, किसी 0℃ वाली बर्फ की पहाड़ी में या किसी 50℃ तापमान वाली जलती रेगिस्तान में एक तंबू के नीचे महीनों गुजार देते हैं उन्हें पिंजरा नही लगता क्या, जरा सोंचिए ?
जब हम किसी ट्रेन या बस में 2-3 घंटे का सफर करते हैं और हमें सीट नही मिलती है तो हम परेशान हो जाते हैं, जरा उस सफेद वर्दी वाले ट्रैफिक सिग्नल पर , उसी भीड़ में प्रत्येक दिन 12- 12 घंटे खड़े रहने वाले ट्रैफिक पुलिस से पूछिए उन्हें तकलीफ नही होती क्या?
भारत के लगभग सभी सरकारी कर्मचारी वेतन बढ़ाने को लेकर या किसी अन्य माँग को लेकर महीनों तक हड़ताल पर जाते हैं, लेकिन कभी सुना है कि एक साधारण वेतन 30-35 हजार पा कर अपने परिवार से दूर दिन रात काम करनेवाले सुरक्षा कर्मी कभी हड़ताल किए हों, ये नौकरी नही करते ये देश की सेवा करते हैं, माँ भारती की सेवा करते हैं।

डॉ और सुरक्षा कर्मी के बारे में जितना भी लिखूं कम है, शर्म आनी चाहिए उन लोंगो को, जो इन्हें लुटेरा शब्द से संबोधित करते हैं।। भारत माता की जय ।।

कुमार गौरव
छात्र- काशी हिन्दू विश्विद्यालय दक्षिणी परिसर,

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