अभी अभी लौटा हूं वापस, आंखें बहुत जल रही है।।पता नहीं जल रही है या दुख रही हैं ?
आराम कुर्सी पर लेटा, जबरदस्ती आंख बंद करने की कोशिश की तो दर्द के छोटे छोटे तीर से चुभे आंखों में… झट से आंखें खोल ली मैंने.. ऐसा लग रहा है मानो एक ही दिन में 65 से 85 का हो गया हूं।।
क्या करूं? कुछ काम नहीं दिख रहा घर में, चाय का बड़ा मन है.. किससे कहूं? वैसे भी मेरी चाय भी तो अलग तरीके से ही बनती है चाय में अदरक की जगह तुलसी के पत्ते डालने होते हैं।।
खैर छोड़ो चाय नहीं पीनी ,आंखें बड़ी गीली गीली लग रही है।। आंसू है शायद पर क्या फायदा ..
जैसा उसने बोला था “80 के भी हो जाओ ना, आंखों पर चश्मा ना चढ़ने दूंगी तुम्हारे ”
उसकी बात का मान तो रखना ही पड़ेगा।। शोर शराबा नहीं हो रहा, लगता है सब लोग चले गए और वह अपना सर टिका कर आराम कुर्सी पर लेट गया।।
दोनों बेटे दो बहू ,बेटी और दामाद कमरे में आए” पापा जी कुछ खा लीजिए कल से कुछ नहीं खाया आपने”
उसका किसी से बात करने का मन नहीं है ,पर जवाब तो देना ही पड़ेगा …”आप लोग खा लो बच्चों मैं खा लूंगा भूखा नहीं रहूंगा चिंता नहीं करो ”
सब लोग चुपचाप कमरे से बाहर निकल गए और मैं वापस लेट गया।।
कल मेरी पत्नी का स्वर्गवास हुआ है, रात में हुआ सुबह अंतिम संस्कार करके हम लोग अभी वापस आए हैं।।
अजीब सा महसूस हो रहा है कभी लगता है पूरे शरीर में गर्म धुआं उठ रहा है, कभी लगता है चिता की अग्नि से चेहरा अभी तक तप रहा है।।
पता नहीं क्या क्या सोच रहा हूं? आंखें बंद करने की कोशिश करता हूं जबरजस्ती सोने की कोशिश करता हूं..
शायद आँख खुले और वह मुझे जगाए “बोले क्यों रो रहे थे नींद में? ,कितना बड़बड़ा रहे थे, उठो चलो सुबह हो गई
काश!! फिर से कहे कि लो तुम्हारी तुलसी पत्ती की चाय तैयार है।। ऐसा हो सकता है क्या? काश ऐसा हो जाए लोग मर के भी तो जिंदा हो जाते हैं …सुना है मैंने बचपन में..मैं भी क्या क्या सोच रहा हूं
2 हफ्ते बाद आज अपने कमरे की सफाई करने बैठा हूं ।।अपनी पत्नी की संदूक खोली.. एक बनारसी साड़ी…. याद आया… डेढ़ साल पहले शादी की सालगिरह पर दी थी उसे।।
कहा था अभी पहन लो.. बोली.. नहीं किसी खास मौके पर पहनूँगी।।
उसने अपने सभी बच्चों को फोन किया घर बुलाया सब बैठक- खाने में बैठ गए।।।उसकी आंखें नम थी ।।गला रुंध रहा था।।
गला खखार कर बोला,” सुनो बच्चों वसीयत में क्या है ?कैसा है? तुम सब अच्छे से जानते हो मुझे दोबारा बताने की जरूरत नहीं है… सब कुछ तुम लोग की सहमति से ही हुआ है ।।
मुझे कुछ और बात करनी है, तुम लोग हमेशा दुखी रहते थे कि पिताजी हर समय एक ही बात बोलते रहते हैं ..आगे की सोच कर चलो.. आगे की सोच कर चलो…
अरे यह चीज अभी क्यों यूज कर ली… यह उस समय यूज हो जाती या अभी वहां जाने की क्या जरूरत है थोड़े टाइम बाद चले जाते …
मुझे तुम सब लोगों के सामने यह मानने में बिल्कुल भी शर्म या संकोच नहीं है कि मैं गलत था …मेरी सोच ही गलत थी।।
मैं अपना ध्यान अपने आप रख सकता हूं ,मैं सिर्फ यह चाहता हूं अपनी बहुयो से ,अपनी बेटी से ..तुम्हारा जो पहनने का मन करता है ..तुम्हारा जो खाने का मन करता है ..तुम्हारा जहां जाने का मन करता है… वह सब करो किसी खास मौके का इंतजार मत करना।।
तुम्हारे पास नई साड़ी है, नया गहना है।। मत सोचो, भूल जाओ कि किसी खास मौके पर पहनूंगी निकालो और पहन लो ।।
खुश रहो ।।बेटों से भी यही कहना चाहता हूं कहीं घूमना चाहते हो कहीं जाना चाहते हो चले जाओ पत्नी को साथ लेकर ।।
मेरी दरख्वास्त है तुम लोगों से किसी खास मौके का इंतजार मत करो ।।
यह बनारसी साड़ी ,अंगूठी देख रहे हो डेढ़ साल पहले तुम्हारी मां को दी थी …शादी की सालगिरह पर बोला था पहन लो मुझे अच्छा लगेगा ।।उसने कहा नहीं किसी खास मौके पर पहनूंगी।।
काश! उसे जबरदस्ती पहना दिया होता तो वहीं उसके लिए खास मौका बन जाता …इसलिए तुम सब कभी किसी खास मौके का इंतजार मत करना ..घूमो फिरो खाओ खेलो जीवन के एक एक क्षण का आनंद लो.. वरना मेरी तरह पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा ..
बहुत मन था उसका बर्फ के पहाड़ देखने का मैंने हमेशा यह कह कर टाल दिया की बस थोड़ी सी तबीयत और सही हो जाए तब चलते हैं ।।
मेरी तबीयत तो सही हो गई ।।लेकिन अब किसे ले जाऊं ?कैसे दिखाऊं उसे बर्फ के पहाड़?
याद रखना जो 1 दिन 1 साल एक घंटा तुम यह सोचते हुए निकाल दोगे ना कि अभी नहीं फिर करेंगे वह समय तो निकल गया वापस नहीं आने वाला..
जो करना है तभी कर लो ..जाओ मेरे बच्चे खुश रहो ..मैं तुम्हारी मां की यादों के साथ इस घर में खुश रहूंगा।।
बस एक बात कहनी थी मेरे मरते समय यह बनारसी साड़ी और यह अंगूठी मेरी चिता पर जरूर डाल देना, यहां ना सही वहां तो मिलेगी मेरी कट्टो तब दूंगा उसे … फिर नहीं करूंगा इंतजार किसी खास मौके का…
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