ये कहानी है एक मोनिका नाम की लड़की का जिसने अपनी सपनों की कितनी मुश्किलों के बाद भी पूरा किया।
मोनिका एक गरीब घर की लड़की थी । वो अपने माता पिता और एक छोटे भाई के साथ अपने गाने में रहा करती थी । मोनिका पढ़ने में काफी तेज थी, उसे जब भी समय मिलता वी किताबें पढ़ने लगती थी। उसके घर की हालत इतनी खराब थी कि उसे अगर एक दिन अच्छे पकवान बन जाए तो अगले दिन खाने पर नौबत आ जाती थी। इस कारण से मोनिका का नामांकन किसी भी अच्छे विद्यालय में नहीं हो पाया। मोनिका को इसका कोई ग़म नहीं था वो रद्दी वाले चाचा के गोदाम में जाकर किताबें पढ़ने लगती थी। उसे ये मतलब नहीं था कि वो किस वर्ग की पुस्तक पढ रही हैं, वो बस पुस्तके पढ़ती रहती थी । मोनिका के पापा ये देख कर खुश तो होते थे ,पर ज्यादा नाराज हो जाते थे कि मैं अपनी बेटी को किसी अच्छे विद्यालय में पढ़ा नहीं सकता।
मोनिका अपने नजदीकी सरकारी विद्यायल में ही जाया करती थी। एक दिन उसके विद्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित कराया गया, जिसके मुख्य अतिथि एक कलेक्टर साहिबा थी । जब वो कलेक्टर साहिबा आई तो सारे लोग खड़े होकर उनका स्वागत किया। यह देख मोनिका दंग रह गई कि आखिर एक मामूली सी लड़की को देख कर ये लोग खड़े क्यों हो गए। मोनिका रात भर ये सोचती रही कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। जब मोनिका अगले दिन विद्यायल आई तो उसका पहला सवाल अपने शिक्षक से यही था कि आखिर वी लड़की कौन थी , तो शिक्षक ने मोनिका को बात बताई । मोनिका का अगला सवाल तुरंत अपने शिक्षक से कि आखिर मैं कलेक्टर कैसे बन सकती हूं। मोनिका की ये उत्सुकता को देख शिक्षक ने सारी बातें बताई । अब मोनिका को बस किसी भी हाल में कलेक्टर बनना था। मोनिका को मालूम था कि उसके पिता उसे आगे की पढ़ाई नहीं कर सकते थे । पर मोनिका ने अपने सपनों के लिए सारी प्लानिंग कर चुकी थी , उसने अपने चाचा के रद्दी गोदाम में जाकर वो सारी किताबों की अलग कर दिया जो की उसे आगे पढ़ने थे। मोनिका इस साल अपनी 12वी की एग्जाम देने वाले थी , पर उसकी मां का किसी बीमारी की वजह से देहांत हो गया। अब मोनिका को अपने पढ़ाई के साथ अपने घर का काम भी करना पड़ता था। मोनिका को अब दिन में समय बहुत कम मिलता था इसलिए वो रातों में जग कर अपनी बोर्ड एग्जाम की तैयारी किया करती थी। उसने 12वी की एग्जाम में उत्तीर्ण होने के बाद बगल के ही कॉलेज में सरकार की scholarship की सहायता से नामांकन कर लिया वो अब उन रद्दी किताबों को जाकर पढ़ने लगी , जो उसने अपने चाचा के गोदाम में अलग कर के रख दिया था। मोनिका अपने स्नातक कि जब आखिरी वर्ष में थी तब ही उसने यूपीएससी के आवेदन पत्र को भरकर जमा कर दिया था। अब वो अपने स्नातक के साथ अपने कलेक्टर साहिबा के सपनों के लिए भी तैयारी शुरू कर दी थी। पर अचानक उनके पिता का भी देहांत एक सड़क दुर्घटना में हो गया । मोनिका टूट चुकी थी पर उसने अपने सपने को टूटने नहीं दिया वो चाचा जी के ही गौदम में काम करने लगी और कभी कभी वो वहीं पढ़ते हुए सो जाया करती थी। उसने अपनी कड़ी मेहनत से यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की। और आज वो अपने जिले की कलेक्टर की पद को संभाले हुए कितने बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही है , ताकि किसी बच्चे का सपना अधूरा ना रह जाए ।
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