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‘तू’ से ‘आप’ तक का सफर

By |2020-02-14T10:22:29+00:00February 14th, 2020|Love, Uncategorized|

“देख समीर, अगर तेरी यही जिद है तो सुन मुझे ये शादी ही नहीं करनी।” मैंने गुस्से में आव देखा न ताव, बस जो मन में आया बोल दिया। उधर फोन पर समीर की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई। हमारी सगाई हुए 1 महीना बीत चुका था और दोनों ओर शादी की तैयारीयां जोरों पर थीं। मुझसे प्यार तो था समीर को, पर अपने मम्मी पापा की बात भी रखना चाहता था और कहीं ना कहीं ये ख्वाहिश उसकी भी थी बस कभी कह नहीं पाया था मुझसे। खैर जो भी हो, मेरे कड़े रवैये को देखते हुए उस वक़्त उसने बात संभालते हुए कहा “अरे डियर, इतना नाराज क्यों हों रही हो? बस शादी के बाद कभी गांव जाएंगे तो मम्मी पापा के सामने मुझे ‘आप’ कह लेना तुम। बाकी दिन, चाहे जिस नाम से पुकारो मैडम, बंदा तुम्हारा गुलाम है।” उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई और उसने समझा “हंसी मतलब फंसी”।

2 महिने बाद शादी करके मैं समीर के साथ बॅंगलोर आ गई। शुरुआत में तो मेरा मन यहां बिल्कुल न लगता। नई भाषा, नया मौहोल, नए लोग, पर समीर मुझे खुश रखने की हर कोशिश करता। खाना बनाने के नाम पर मैं बस दाल चावल और मैग्गी बनाने में माहीर थी और समीर ठेहरा बिल्कुल एक्सपर्ट शेफ! तो ज़ाहिर सी बात थी के ये डिपार्टमेंट भी उसी ने संभाला हुआ था। मीठी सी नोकझोंक के साथ जिंदगी बिल्कुल पटरी पर चल रही थी। कभी प्यार से तो कभी रिश्तेदारों का हवाला देकर समीर ने मुझे उसे ‘आप’ कहने के लिए बहुत सी बार मनाया, पर हर बार मैंने भी उसे शादी के पहले दिया प्राॅमीस याद दिला कर उसकी हर एक दलील खारीज कर दी और धीरे-धीरे उसे भी इस ‘तू’ की आदत पड़ गई।

समय गुजरता गया और हम दो से चार हुए। इन सब सालों में पति के अलावा भी मैंने समीर के कई सारे रूप देखे। अच्छा पिता, आग्याकारी बेटा, अच्छा सहकर्मी, दोस्त, यह सब तो वह था ही पर आजकल के जमाने में कम पाया जाने वाला ‘बड़ा दिल’ भी मैंने बस समीर का ही देखा था। जिंदगी के सारे उतार-चढ़ावों में मैंने उसे हमेशा अपने साथ खड़ा पाया। मायके के प्रति मेरी सारी जिम्मेदारियों को भी मुझसे बढ़-चढ़कर समीर ने निभाया था। मेरे दिल में उसके प्रति प्यार की जगह कब आदर ने ले ली, मैं खुद भी समझ न पाई।

हमारे शादी की 10वीं सालगिरह के मौके पर मैंने समीर के लिए एक सरप्राइस प्लान किया। सालगिरह के दिन मैं जल्दी उठकर तैयार हुई और एक खुबसूरत साड़ी पहन समीर को उसके पिछले 10 सालों की ख्वाइश तोहफे में देते हुए कहा “अजी उठीए भी, चाय लाई हूं आपके लिए।” इतनी मिठास भरी आवाज सुनने की आदत न होने से समीर हड़बड़ाकर उठ गया। “अरे ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो आज!” समीर ने पूछा तो चाय के साथ साथ गरमागरम कचौड़ीया परोसते हुए मैंने कहा “बहकी बहकी बातें नहीं जी, बल्कि आपकी इच्छा का सम्मान कर रही हूं। आप हमेशा से चाहते थे ना कि मैं आपको ‘आप’ करके बुलाऊं तो आज के दिन मैं आपकी यह ख्वाहिश पूरी करना चाहती हूं।” मेरे मुंह से इतनी बार ‘आप’ सुन समीर ने मुझे सिर से पांव तक घूरा। सलीके से पहनी हुई साड़ी, करीने से बांधा बालों का जूड़ा, हाथों में चूड़ियां, माथे पर बड़ी सी बिंदी, मांग में हल्का सिंदूर और इन सब पर भारी मेरा सिर पर लिया पल्लू देख समीर का तो सिर चकरा गया। “सुंदर लग रही हो आज” बस इतना कहते हुए उसने कचौड़ीयों पर ध्यान देना बेहतर समझा।

मैंने भी अपने भारतीय नारी के किरदार को कायम रखते हुए ‘आप’ कहने का सिलसिला दिनभर बदस्तूर जारी रखा। शाम को समीर के घर लौटने पर उसे चाय देते हुए मैंने पूछा “सुनीए जी खाने में आपका पसंदीदा मालपुआ, मलाई कोफ्ता, राजमा, दाल मखनी, मटर पुलाव, बूंदी का रायता, पापड़ और साथ में दहीबड़े भी….”

“बना लिए हैं?” मुझे बीच में ही रोकते हुए समीर ने पूछ लिया।

“इतना सब ना करो” इस जवाब के इंतजार में बैठी मैं उसके अचानक किए सवाल से गड़बड़ा गई “अरे नहीं जी, बनाने का सोच रही थी। बस पूछने आई थी कि आपका कुछ और भी खाने का मन हो तो बना दूंगी” सिर से गिरता पल्लू और अपने आप को संभलते हुए मैंने जवाब दिया।

“अच्छा?” समीर ने मुझे एक नजर देखते हुए कहा “अगर तुम पूछ ही रही हो तो रोटी के साथ साथ थोड़ी सी पूरियां भी तल लेना। अरे हां तुम्हारे हाथ का पनीर पकौड़ा और अखरोट की चटनी खाए हुए भी काफी दिन हो गए यार। और आज के दिन हम दोनों का फेवरेट फ्रूटसलाद तो बनता ही है। है ना? वैसे जानता हूं कि ‘ना’ ही कहोगी, पर फिर भी कुछ मदद कर दूं तुम्हारी?” समीर ने शरारत भरी आवाज में पुछा। इस अनपेक्षित प्रतिवार को सुन मेरा तो बस गश खाकर गिरना ही बाकी था। “नहीं जी, मैं बना लूंगी, आप आराम कीजिएगा” मैंने कह तो लिया पर मेरे अंदर की पुरानी फिल्मों की नायिका अब दम तोड़ती नजर आ रही थी।

“खाने की तैयारियां हो गई?” समीर ने पीछे से आकर पूछा तो मैं अचानक से होश में आई। सोशल मीडिया पर सबकी बधाइयों का रिप्लाई देते देते 2 घंटे कब बीत चुके थे मुझे पता ही नहीं चला। “जी.. मैं.. वो.. फोन.. तुम.. आप.. खाना..” टेंशन के कारण मेरी जुबान लड़खड़ा रही थी और समीर ठहाका मारकर हंस रहा था। मेरी रोनी सुरत देख उसने धीरे से कहा “सुनो, तुम्हारे फेवरेट रेस्टोरेंट में टेबल बूक कर दिया है। अब जल्दी करो” मन की अपरंपार खुशी चेहरे पर जाहिर ना करते हुए मैंने कहा “अरे पर मैं तो तुम्हारे, नहीं नहीं आपके लिए..” मेरे मुंह पर उंगली रखते हुए समीर बोला “बस करो यार, ये क्या लगा रखा है सुबह से? मुझे तो मेरी ‘तू’ कहने वाली, लड़ने झगड़ने वाली, समझने समझाने वाली प्यारी दोस्त ही पसंद है। इस बीवी को बीच में कहाँ से ले आई तुम हां? मानता हूं कि कभी चाहता था मैं ये सब, पर अब समझ गया हूं कि पति-पत्नी के रिश्ते की बुनियाद ‘तू’ या ‘आप’ कहने पर निर्भर नहीं होती। इसके लिए तो आपसी तालमेल और प्यार की जरूरत है और वो मैं तुमसे बेहद करता हूं।” कहते हुए समीर घुटनों के बल बैठ गया और मैं मुस्कुरा कर उसके गले लग गई।

दोस्तों, ये कहानी मेरे प्यारे पतिदेव को समर्पित है। बस इतना कहूंगी कि जिवनसाथी के प्रति सम्मान या आदर उसे ‘आप’ कहने से न तो बढ़ता है और ना ही ‘तू’ कहकर बुलाने से कम होता है। ये तो आपका उस रिश्ते के प्रति समर्पण है जो हमसफ़र की नजरों में आपकी इज्जत को बढ़ाता है।

 

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